मान्यता टेक पार्क, एंबेसी गोल्फ़लिंक्स बिज़नेस पार्क और UB सिटी की वजह से, बेंगलुरु को भारत की सिलिकॉन वैली के तौर पर जाना जाता है. हालाँकि, इसका एक और नाम भी है: गार्डन सिटी. बेंगलुरु में कब्बन पार्क जैसे हरे-भरे पार्क और पैलेस, आर्ट म्यूज़ियम और थिएटर के चारों ओर खूबसूरत बगीचे हैं. मेज़ेस्टिक और कोरमंगला डिस्ट्रिक्ट के पास हमारा 5-स्टार होटल, घूमने-फिरने के लिए एक परफ़ेक्ट डेस्टिनेशन है.
लालबाग बॉटनिकल गार्डन - 2 किमी
18वीं सदी में मैसूर के सम्राट हैदर अली ने लालबाग बॉटनिकल गार्डन की नींव रखी थी. बाद में, उनके बेटे टीपू सुल्तान ने इसे पूरा किया. उन्होंने बेंगलुरु के लालबाग बॉटनिकल गार्डन में तरह-तरह के पेड़-पौधे लगाने के लिए, पर्शिया, अफ़गानिस्तान और फ़्रांस जैसे दुनिया के अलग-अलग देशों से पेड़-पौधे मँगवाए. यह गार्डन बेंगलुरु के संस्थापक केंपे गौड़ा द्वारा बनवाए गए टावरों में से एक के चारों ओर फैला हुआ है.
इन गार्डन में लगभग 1000 अलग-अलग तरह के पेड़-पौधों की प्रजातियाँ मौजूद हैं. यहाँ एक ग्लास हाउस भी है, जिसे लंदन के क्रिस्टल पैलेस के मॉडल पर बनाया गया है. 2400 एकड़ के इलाके में फैले लालबाग बॉटनिकल गार्डन में भारत के सबसे ज़्यादा दुर्लभ और विदेशी पेड़-पौधों का संग्रह है. देश की पहली लॉन क्लॉक भी इन्हीं बागानों में लगाई गई थी.
लालबाग बॉटनिकल गार्डन में घूमने लायक और भी चीज़ें हैं, जैसे लाल बाग रॉक, जो धरती पर सबसे पुरानी चट्टानों में से एक है. माना जाता है कि यह करीब 3000 मिलियन साल पुरानी है. इस गार्डन को बहुत खूबसूरती से डिज़ाइन किया गया है, जिसमें लॉन, फूलों की क्यारियाँ, कमल के तालाब और फव्वारे इसकी खूबसूरती को और बढ़ाते हैं. हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के जश्न के तौर पर, इन बॉटनिकल गार्डन में फूलों की शानदार प्रदर्शनी भी लगती है.
कब्बन पार्क - 2.3 किमी
1864 में स्थापित, यह पार्क सर मार्क कब्बन, उस समय के भारत के वाइसरॉय, द्वारा बनवाया गया था. कब्बन पार्क लगभग 250 एकड़ में फैला हुआ है और यहाँ पैदल चलने वाले और जॉगिंग करने वाले लोग अक्सर आते-जाते रहते हैं.
कब्बन पार्क के इंजीनियर सर रिचर्ड सैंकी थे, जो उस समय मैसूर के चीफ़ इंजीनियर थे.
इस पार्क के अंदर कई नव-शास्त्रीय शैली की सरकारी इमारतें हैं, जिनमें से एक विधान सौधा है. पब्लिक लाइब्रेरी, सरकारी म्यूज़ियम और हाई कोर्ट भी पार्क के अंदर ही हैं. बेंगलुरु के बीचों-बीच स्थित कब्बन पार्क, पेड़ों, फूलों की क्यारियों और घुमावदार लॉन से सजा हुआ है. जो लोग बेंगलुरु में कुछ पल शांति और सुकून के बिताना चाहते हैं, उनके लिए कब्बन पार्क एक बेहतरीन जगह है.
अट्टारा कचेरी - 2.9 किमी
बेंगलुरु का अट्टारा कचेरी एक ऐसी बिल्डिंग है जिसमें अब हाई कोर्ट है. यह विधान सौधा के ठीक सामने है और इसे 1867 में बनाया गया था. अट्टारा कचेरी का एक मुख्य आकर्षण इसका गॉथिक स्टाइल आर्किटेक्चर है. यह दो फ़्लोर बिल्डिंग है, जिसे यूरोपियन क्लासिकल स्टाइल में बनाया गया है.
बेंगलुरु का अट्टारा कचेरी मैसूर के सम्राट टीपू सुल्तान के शासनकाल में बनाया गया था. ऐसा कहा जाता है कि उनके समय में, राजस्व और सामान्य सचिवालय के अठारह विभागों के ऑफ़िस काफ़ी बढ़ गए थे. चूँकि महल में ऑफ़िसों के लिए जगह नहीं थी, इसलिए उन्होंने एक नई इमारत बनाने का आदेश दिया, जहाँ इन ऑफ़िसों को ले जाया जा सके. उन्होंने इस इमारत का नाम अट्टारा कचेरी रखा, जिसका मतलब है अठारह ऑफ़िस या विभाग.
विधान सौधा - 3.8 किमी
1950 की शुरुआत में बना, यह शानदार इमारत कर्नाटक की अपनी वास्तुकला को दिखाने और लोकतंत्र के नए युग की शुरुआत करने के लिए डिज़ाइन की गई थी. इसमें राज्य विधानमंडल और सचिवालय हैं और यह बेंगलुरु के सबसे मशहूर लैंडमार्क में से एक है.
यह पत्थर से बनी इमारत, जो 'नियो-द्रविड़' शैली के आर्किटेक्चर को दर्शाती है, 'बेंगलुरु-ग्रेनाइट' से बनाई गई थी, जिसे मल्लासंद्र और हेसरघट्टा से निकाला गया था.
बुल टेम्पल - 6.5 किमी
बेंगलुरु में केंपेगौड़ा ने बसवनागुड़ी (जो अब बेंगलुरु में एक जगह है) में यह मंदिर बनवाया था. इस मंदिर 16वीं शताब्दी की द्रविड़ शैली की वास्तुकला झलकती है. यहाँ नंदी (बैल) की एक बड़ी ग्रेनाइट की मूर्ति है. यह शायद एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ 'वाहन' (भगवान का वाहन) को भगवान (हिंदू भगवान – शिव) से ज़्यादा महत्व दिया जाता है. बसवनन्ना के रूप में पूजे जाने वाले इस विशाल बैल को देखने के लिए, लोग दूर-दूर से आते हैं और इसकी लोकप्रियता की वजह से ही इस जगह का नाम बसवनागुड़ी या बुल टेंपल पड़ा. बैल के सिर पर एक छोटी लोहे की प्लेट भी है. परंपरा के अनुसार, यह प्लेट बैल को बड़ा होने से रोकती है. मूर्ति के पीछे, उनके रथों पर भगवान सूर्य और देवी चंद्र की सुंदर मूर्तियाँ हैं.
बेंगलुरु पैलेस - 8.2 किमी
मैसूर के महाराजाओं की इस बेमिसाल वास्तुशिल्प का निर्माण 1862 में शुरू हुआ और यह 1944 में बनकर तैयार हुआ था. यह 45,000 वर्ग फ़ुट में फैला हुआ है. इतिहास में डूबा हुआ यह महल उस शाही ज़माने की शानो-शौक़त को याद दिलाता है, जब जीवन शैली ऐसी ही हुआ करती थी. दो कमरे जो सबसे खास हैं, वे हैं ग्राउंड फ़्लोर पर बॉलरूम और फ़र्स्ट फ़्लोर पर दरबार हॉल, जहाँ महाराजा सभा को संबोधित करते थे. बॉलरूम बहुत शानदार है. इसमें बर्मा के जंगलों से लाए गए पॉलिश किए हुए टीक लकड़ी के फ़र्श से लेकर काँच के झूमर तक लगे हैं. इस महल के बगीचों को मशहूर जर्मन बॉटनिस्ट गुस्ताव क्रम्बिगेल ने डिज़ाइन किया था. पौधों को इस तरह से चुना गया था कि यहाँ पूरे साल हरियाली बनी रहे.